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Showing posts from 2009

आशा

तुम फिर मिलोगे कहकर जो तुम गए थे अब तक देखो तक रहा हूं जिस पथ तुम गए थे

स्मरण

विस्मृत न होंगे तुम्हें शायद मेरे वो पहले तीन शब्द वो उद्गार शब्द मात्र नहीं रोम-रोम प्रस्फुटित हृदय धमनी स्पंदित स्नेहरंजित आकर्षण समर्पण चाहत मुहब्बत सब कुछ पिरोकर समर्पित किया था जो तुम्हें मनोज्ञहार अहोभाग्य किया था तूने उसे सहर्ष स्वीकार आज वर्षों बाद फिर क्यूं है इनकार

इक चेहरा

अजबनी शहर की इस भीड़-भाड़ में इक चेहरा जाना-पहचाना सा बिलकुल अपना सा हमें क्यूं लगा जबकि न मैं उसे जानता न वो मुझे पहचानता न जाने किसकी प्रेरणा से न जाने किस चाहत में हम यूं ही खिचें चले गए कैसे कुछ इतना दिल की तमाम बातें कहे चले गए कहां का वो कहां का मैं कहां किस संयोग से हमें वो दिखा इस अजबनी शहर में वही इक चेहरा ही अपना सा क्यूं लगा शायद था वो मेरा पूर्व जन्म का सखा।

मानो ना मानो

कुछ से ज्यादा बहुत कुछ हमारे बीच था, है और रहेगा कहने को हम हैं अलग-अलग पर मैं तुममें तुम मुझमें थे, हैं और रहेंगे हरदम, हरपल। बहुत कुछ रहा हमारे बीच पर लगता रहा यही कुछ नही है हमारे बीच क्या मन भर क्या तन भर सदियां गुजर गईं इसी कशमकश में ये अब पता चला तर्क है नही इस संबंध में जो थे, हैं और रहेंगे हमारे-तुम्हारे बीच