अजबनी शहर की इस भीड़-भाड़ में इक चेहरा जाना-पहचाना सा बिलकुल अपना सा हमें क्यूं लगा जबकि न मैं उसे जानता न वो मुझे पहचानता न जाने किसकी प्रेरणा से न जाने किस चाहत में हम यूं ही खिचें चले गए कैसे कुछ इतना दिल की तमाम बातें कहे चले गए कहां का वो कहां का मैं कहां किस संयोग से हमें वो दिखा इस अजबनी शहर में वही इक चेहरा ही अपना सा क्यूं लगा शायद था वो मेरा पूर्व जन्म का सखा।
यादें, जो जुड़ी रहती हैं हर एक के विगत जीवन से, सबके पास होता है कुछ न कुछ याद करने को, हर एक के हिस्से में आती हैं यादें - कुछ खट्टी, कुछ मीठी, कुछ कसैली, तो कुछ खुशनुमा.. यादें वो, जो कभी विस्मृत हुई ही नहीं, यादें वो, जो अक्सर आ ही जाती है ख्यालों में.