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Showing posts from February, 2009

इक चेहरा

अजबनी शहर की इस भीड़-भाड़ में इक चेहरा जाना-पहचाना सा बिलकुल अपना सा हमें क्यूं लगा जबकि न मैं उसे जानता न वो मुझे पहचानता न जाने किसकी प्रेरणा से न जाने किस चाहत में हम यूं ही खिचें चले गए कैसे कुछ इतना दिल की तमाम बातें कहे चले गए कहां का वो कहां का मैं कहां किस संयोग से हमें वो दिखा इस अजबनी शहर में वही इक चेहरा ही अपना सा क्यूं लगा शायद था वो मेरा पूर्व जन्म का सखा।

मानो ना मानो

कुछ से ज्यादा बहुत कुछ हमारे बीच था, है और रहेगा कहने को हम हैं अलग-अलग पर मैं तुममें तुम मुझमें थे, हैं और रहेंगे हरदम, हरपल। बहुत कुछ रहा हमारे बीच पर लगता रहा यही कुछ नही है हमारे बीच क्या मन भर क्या तन भर सदियां गुजर गईं इसी कशमकश में ये अब पता चला तर्क है नही इस संबंध में जो थे, हैं और रहेंगे हमारे-तुम्हारे बीच