कौन हो तुम? संसृति-जलनिधि तीर-तरंगों से फेंकी मणि एक, कर रहे निर्जन का चुपचाप प्रभा की धारा से अभिषेक? मधुर विश्रांत और एकांत-जगत का सुलझा हुआ रहस्य, एक करुणामय सुंदर मौन और चंचल मन का आलस्य" सुना यह मनु ने मधु गुंजार मधुकरी का-सा जब सानंद, किये मुख नीचा कमल समान प्रथम कवि का ज्यों सुंदर छंद, एक झटका-सा लगा सहर्ष, निरखने लगे लुटे-से कौन गा रहा यह सुंदर संगीत? कुतुहल रह न सका फिर मौन। और देखा वह सुंदर दृश्य नयन का इद्रंजाल अभिराम, कुसुम-वैभव में लता समान चंद्रिका से लिपटा घनश्याम। हृदय की अनुकृति बाह्य उदार एक लम्बी काया, उन्मुक्त मधु-पवन क्रीडित ज्यों शिशु साल, सुशोभित हो सौरभ-संयुक्त। मसृण, गांधार देश के नील रोम वाले मेषों के चर्म, ढक रहे थे उसका वपु कांत बन रहा था वह कोमल वर्म। नील परिधान बीच सुकुमार खुल रहा मृदुल अधखुला अंग, खिला हो ज्यों बिजली का फूल मेघवन बीच गुलाबी रंग। आह वह मुख पश्विम के व्योम बीच जब घिरते हों घन श्याम, अरूण रवि-मंडल उनको भेद दिखाई देता हो छविधाम। या कि, नव इंद्रनील लघु श्रृंग फोड़ कर धधक रही हो कांत एक ज्वाल
यादें, जो जुड़ी रहती हैं हर एक के विगत जीवन से, सबके पास होता है कुछ न कुछ याद करने को, हर एक के हिस्से में आती हैं यादें - कुछ खट्टी, कुछ मीठी, कुछ कसैली, तो कुछ खुशनुमा.. यादें वो, जो कभी विस्मृत हुई ही नहीं, यादें वो, जो अक्सर आ ही जाती है ख्यालों में.