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आज़ाद हिंद फौज की वीर स्वतंत्रता सेनानी नीरा आर्या

 "दे दी हमें आज़ादी, बिना खड़ग बिना ढाल    साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।" इससे बड़ा झूठ शायद ही कोई हो। इस झूठ को बचपन से ही हमारे देश के कांग्रेसी नेताओं ने हमें पढ़वाया, सिखाया, हमारे मन-मस्तिष्क में कूट-कूट कर भरा। देश की आज़ादी में सिर्फ और सिर्फ कांग्रेसियों का ही योगदान रहा, उन्हीं के कारण आज़ादी मिली। अरे, मूर्खों, फिर जो फांसी पर लटके, अंग्रेजों की यातनाये सहते हुए शहीद हुए, वे लोग कौन थे? नेताजी सुभाष चंद्र बोस कौन थे? आज़ाद हिंद फौज के वीर सेनानी कौन थे? इस पोस्ट में ऐसे ही भूली-बिसरी आज़ाद हिंद फौज की वीर स्वतंत्रता सेनानी नीरा आर्या की बात करते हैं। नीरा आर्या स्वतंत्र भारत में 1998 तक जीवित रहीं, परन्तु कांग्रेसियों ने उनकी सुध तक नहीं ली। नीरा आर्या की आत्मकथा से ही उनके योगदान को चित्रित करते हैं- 5 मार्च 1902 को तत्कालीन संयुक्त प्रांत के खेकड़ा नगर में एक प्रतिष्ठित व्यापारी सेठ छज्जूमल के घर जन्मी नीरा आर्य आजाद हिन्द फौज में रानी झांसी रेजिमेंट की सिपाही थीं, जिन पर अंग्रेजी सरकार ने गुप्तचर होने का आरोप भी लगाया था। इन्हें नीरा ​नागिनी के नाम से भी जाना जाता ह
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कविता - हरिवंश राय बच्चन

नव वर्ष हर्ष नव जीवन उत्कर्ष नव। नव उमंग, नव तरंग, जीवन का नव प्रसंग। नवल चाह, नवल राह, जीवन का नव प्रवाह। गीत नवल, प्रीति नवल, जीवन की रीति नवल, जीवन की नीति नवल, जीवन की जीत नवल! 

श्रद्धा (कामायनी) - जयशंकर प्रसाद

कौन हो तुम? संसृति-जलनिधि तीर-तरंगों से फेंकी मणि एक, कर रहे निर्जन का चुपचाप प्रभा की धारा से अभिषेक? मधुर विश्रांत और एकांत-जगत का सुलझा हुआ रहस्य, एक करुणामय सुंदर मौन और चंचल मन का आलस्य" सुना यह मनु ने मधु गुंजार मधुकरी का-सा जब सानंद, किये मुख नीचा कमल समान प्रथम कवि का ज्यों सुंदर छंद, एक झटका-सा लगा सहर्ष, निरखने लगे लुटे-से कौन गा रहा यह सुंदर संगीत? कुतुहल रह न सका फिर मौन। और देखा वह सुंदर दृश्य नयन का इद्रंजाल अभिराम, कुसुम-वैभव में लता समान चंद्रिका से लिपटा घनश्याम। हृदय की अनुकृति बाह्य उदार एक लम्बी काया, उन्मुक्त मधु-पवन क्रीडित ज्यों शिशु साल, सुशोभित हो सौरभ-संयुक्त। मसृण, गांधार देश के नील रोम वाले मेषों के चर्म, ढक रहे थे उसका वपु कांत बन रहा था वह कोमल वर्म। नील परिधान बीच सुकुमार खुल रहा मृदुल अधखुला अंग, खिला हो ज्यों बिजली का फूल मेघवन बीच गुलाबी रंग। आह वह मुख पश्विम के व्योम बीच जब घिरते हों घन श्याम, अरूण रवि-मंडल उनको भेद दिखाई देता हो छविधाम। या कि, नव इंद्रनील लघु श्रृंग फोड़ कर धधक रही हो कांत एक ज्वाल

आशा (कामायनी) - जयशंकर प्रसाद

ऊषा सुनहले तीर बरसती जयलक्ष्मी-सी उदित हुई, उधर पराजित काल रात्रि भी जल में अतंर्निहित हुई। वह विवर्ण मुख त्रस्त प्रकृति का आज लगा हँसने फिर से, वर्षा बीती, हुआ सृष्टि में शरद-विकास नये सिर से। नव कोमल आलोक बिखरता हिम-संसृति पर भर अनुराग, सित सरोज पर क्रीड़ा करता जैसे मधुमय पिंग पराग। धीरे-धीरे हिम-आच्छादन हटने लगा धरातल से, जगीं वनस्पतियाँ अलसाई मुख धोती शीतल जल से। नेत्र निमीलन करती मानो प्रकृति प्रबुद्ध लगी होने, जलधि लहरियों की अँगड़ाई बार-बार जाती सोने। सिंधुसेज पर धरा वधू अब तनिक संकुचित बैठी-सी, प्रलय निशा की हलचल स्मृति में मान किये सी ऐठीं-सी। देखा मनु ने वह अतिरंजित विजन का नव एकांत, जैसे कोलाहल सोया हो हिम-शीतल-जड‌़ता-सा श्रांत। इंद्रनीलमणि महा चषक था सोम-रहित उलटा लटका, आज पवन मृदु साँस ले रहा जैसे बीत गया खटका। वह विराट था हेम घोलता नया रंग भरने को आज, 'कौन'? हुआ यह प्रश्न अचानक और कुतूहल का था राज़! "विश्वदेव, सविता या पूषा, सोम, मरूत, चंचल पवमान, वरूण आदि सब घूम रहे हैं किसके शासन में अम्लान? किसका था भू-भंग

भारत महिमा - जयशंकर प्रसाद

छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक जयशंकर प्रसाद का जन्म ३० जनवरी १८९० को वाराणसी में हुआ। स्कूली शिक्षा आठवीं तक किंतु घर पर संस्कृत, अंग्रेज़ी, पाली, प्राकृत भाषाओं का अध्ययन किया। इसके बाद भारतीय इतिहास, संस्कृति, दर्शन, साहित्य और पुराण कथाओं का एकनिष्ठ स्वाध्याय किया। पिता देवी प्रसाद तंबाकू और सुंघनी का व्यवसाय करते थे और वाराणसी में इनका परिवार सुंघनी साहू के नाम से प्रसिद्ध था| महान छायावादी लेखक के रूप में प्रख्यात जयशंकर प्रसाद ने विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करूणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन किया। ४८ वर्षो के छोटे से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएं दीं| उन्हीं में से एक रचना "भारत महिमा" प्रस्तुत है:- हिमालय के आँगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक-हार जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक व्योम-तम पुँज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक विमल वाणी ने वीणा ली, कमल कोमल कर में सप्रीत सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे

जियो जियो अय हिन्दुस्तान - रामधारी सिंह "दिनकर"

जाग रहे हम वीर जवान, जियो जियो अय हिन्दुस्तान ! हम प्रभात की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल, हम नवीन भारत के सैनिक, धीर,वीर,गंभीर, अचल । हम प्रहरी उँचे हिमाद्रि के, सुरभि स्वर्ग की लेते हैं । हम हैं शान्तिदूत धरणी के, छाँह सभी को देते हैं। वीर-प्रसू माँ की आँखों के हम नवीन उजियाले हैं गंगा, यमुना, हिन्द महासागर के हम रखवाले हैं। तन मन धन तुम पर कुर्बान, जियो जियो अय हिन्दुस्तान ! हम सपूत उनके जो नर थे अनल और मधु मिश्रण, जिसमें नर का तेज प्रखर था, भीतर था नारी का मन ! एक नयन संजीवन जिनका, एक नयन था हालाहल, जितना कठिन खड्ग था कर में उतना ही अंतर कोमल। थर-थर तीनों लोक काँपते थे जिनकी ललकारों पर, स्वर्ग नाचता था रण में जिनकी पवित्र तलवारों पर हम उन वीरों की सन्तान , जियो जियो अय हिन्दुस्तान ! हम शकारि विक्रमादित्य हैं अरिदल को दलनेवाले, रण में ज़मीं नहीं, दुश्मन की लाशों पर चलनेंवाले। हम अर्जुन, हम भीम, शान्ति के लिये जगत में जीते हैं मगर, शत्रु हठ करे अगर तो, लहू वक्ष का पीते हैं। हम हैं शिवा-प्रताप रोटियाँ भले घास की खाएंगे, मगर, किसी ज़ुल्मी के आगे मस्तक नहीं