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बालिका का परिचय- सुभद्रा कुमारी चौहान

गणतंत्र दिवस एवं बालिका बचाओ अभियान के इस सुअवसर पर   सुभद्रा कुमारी चौहान की यह कविता प्रासंगिक है.

सुभद्रा जी ने 1921 में असहयोग-आन्दोलन के प्रभाव से अपनी शिक्षा अधूरी छोड़ दी और राजनीति में सक्रिय भाग लेने लगीं. अपने राजनीतिक कार्यों के कारण इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा.

काव्य-रचना की ओर इनकी प्रवृत्ति विद्यार्थी काल से ही थी. इनकी कविताएं ‘त्रिधारा’ और ‘मुकुल’ में संकलित हैं. भाव की दृष्टि से इनकी कविताओं को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है. प्रथम वर्ग में राष्ट्र प्रेम की कविताएं रखी जा सकती हैं. इनमें इन्होंने असहयोग या आज़ादी की लड़ाई में भाग लेने वाले वीरों को अपना विषय बनाया है. इनकी ‘झांसी की रानी’ कविता तो सामान्य जनता में बहुत प्रसिद्ध हुई है. दूसरे वर्ग के अंतर्गत वे कविताएं रखी जा सकती हैं, जिनकी प्रेरणा इन्हें पारिवारिक जीवन से प्राप्त हुई है. ऐसी कविताओं में कुछ तो पतिप्रेम की  भावना से अनुप्राणित हैं और कुछ में संतान के प्रति वात्सल्य की सहज एवं मार्मिक अभिव्यक्ति मिलती है. इनकी भाषा-शैली भावों के अनुरूप सरलता और गति लिए हुए है.

बालिका का परिचय

यह  मेरी  गोदी की  शोभा
सुख सुहाग  की  है लाली।
शाही शान भिखारिन की है
मनोकामना    मतवाली ॥

दीप-शिखा है अन्धकार की
घनी  घटा  की उजियाली।
ऊषा है यह कमल-भृंग की
है  पतझड़ की  हरियाली॥

सुधा-धार  यह नीरस दिल की
मस्ती   मगन  तपस्वी  की।
जीवन ज्योति नष्ट नयनों की
सच्ची  लगन  मनस्वी  की॥

बीते  हुए  बालपन  की यह
क्रीड़ापूर्ण     वाटिका    है।
वही मचलना, वही किलकना
हँसती    हुई   नाटिका है॥

मेरा मन्दिर, मेरी  मसजिद
काबा-काशी   यह    मेरी।
पूजा-पाठ, ध्यान-जप-तप है
घट-घट-वासी   यह  मेरी॥

कृष्णचन्द्र की क्रीड़ाओं को
अपने  आँगन  में  देखो।
कौशल्या के मातृमोद  को
अपने ही मन  में  लेखो॥

प्रभु   ईसा  की  क्षमाशीलता
नबी  मुहम्मद  का विश्वास।
जीव दया जिनवर गौतम की
आओ   देखो  इसके  पास॥

परिचय पूछ रहे  हो मुझसे,
कैसे  परिचय  दूँ  इसका।
वही जान सकता है इसको,
माता का दिल है जिसका ll

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