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Showing posts from March, 2009

आशा

तुम फिर मिलोगे कहकर जो तुम गए थे अब तक देखो तक रहा हूं जिस पथ तुम गए थे

स्मरण

विस्मृत न होंगे तुम्हें शायद मेरे वो पहले तीन शब्द वो उद्गार शब्द मात्र नहीं रोम-रोम प्रस्फुटित हृदय धमनी स्पंदित स्नेहरंजित आकर्षण समर्पण चाहत मुहब्बत सब कुछ पिरोकर समर्पित किया था जो तुम्हें मनोज्ञहार अहोभाग्य किया था तूने उसे सहर्ष स्वीकार आज वर्षों बाद फिर क्यूं है इनकार