विस्मृत न होंगे
तुम्हें शायद
मेरे वो
पहले तीन शब्द
वो उद्गार
शब्द मात्र नहीं
रोम-रोम प्रस्फुटित
हृदय धमनी स्पंदित
स्नेहरंजित
आकर्षण
समर्पण
चाहत
मुहब्बत
सब कुछ पिरोकर
समर्पित किया था
जो तुम्हें मनोज्ञहार
अहोभाग्य
किया था तूने उसे
सहर्ष स्वीकार
आज वर्षों बाद
फिर क्यूं है इनकार
तुम्हें शायद
मेरे वो
पहले तीन शब्द
वो उद्गार
शब्द मात्र नहीं
रोम-रोम प्रस्फुटित
हृदय धमनी स्पंदित
स्नेहरंजित
आकर्षण
समर्पण
चाहत
मुहब्बत
सब कुछ पिरोकर
समर्पित किया था
जो तुम्हें मनोज्ञहार
अहोभाग्य
किया था तूने उसे
सहर्ष स्वीकार
आज वर्षों बाद
फिर क्यूं है इनकार
Comments
Post a Comment