बुरा सदा कहलायेगा जग में
बाँका, मद-चंचल प्याला,
छैल छबीला, रसिया साकी,
अलबेला पीने वाला,
पटे कहाँ से, मधुशाला औ'
जग की जोड़ी ठीक नहीं,
जग जर्जर प्रतिदन, प्रतिक्षण,
पर नित्य नवेली मधुशाला।।२३।
बिना पिये जो मधुशाला को
बुरा कहे, वह मतवाला,
पी लेने पर तो उसके मुँह
पर पड़ जाएगा ताला,
दास- द्रोहियों दोनों में है
जीत सुरा की, प्याले की,
विश्वविजयिनी बनकर जग में
आई मेरी मधुशाला।।२४।
हरा भरा रहता मदिरालय,
जग पर पड़ जाए पाला,
वहाँ मुहर्रम का तम छाए,
यहाँ होलिका की ज्वाला,
स्वर्ग लोक से सीधी उतरी
वसुधा पर, दुख क्या जाने,
पढ़े मर्सिया दुनिया सारी,
ईद मनाती मधुशाला।।२५।
एक बरस में, एक बार ही
जगती होली की ज्वाला,
एक बार ही लगती बाज़ी,
जलती दीपों की माला,
दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन
आ मदिरालय में देखो,
दिन को होली, रात दिवाली,
रोज़ मनाती मधुशाला।।२६।
नहीं जानता कौन, मनुज
आया बनकर पीनेवाला,
कौन अपिरिचत उस साकी से,
जिसने दूध पिला पाला,
जीवन पाकर मानव पीकर
मस्त रहे, इस कारण ही,
जग में आकर सबसे पहले
पाई उसने मधुशाला।।२७।
बनी रहें अंगूर लताएँ
जिनसे मिलती है हाला,
बनी रहे वह मिटटी जिससे
बनता है मधु का प्याला,
बनी रहे वह मदिर पिपासा
तृप्त न जो होना जाने,
बनें रहें ये पीने वाले,
बनी रहे यह मधुशाला।।२८।
सकुशल समझो मुझको, सकुशल
रहती यदि साकीबाला,
मंगल और अमंगल समझे
मस्ती में क्या मतवाला,
मित्रों, मेरी क्षेम न पूछो
आकर, पर मधुशाला की,
कहा करो 'जय राम' न मिलकर,
कहा करो 'जय मधुशाला'।।२९।
सूर्य बने मधु का विक्रेता,
सिंधु बने घट, जल, हाला,
बादल बन-बन आए साकी,
भूमि बने मधु का प्याला,
झड़ी लगाकर बरसे मदिरा
रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम कर,
बेलि, विटप, तृण बन मैं पीऊँ,
वर्षा ऋतु हो मधुशाला।।३०।
क्रमश:
बाँका, मद-चंचल प्याला,
छैल छबीला, रसिया साकी,
अलबेला पीने वाला,
पटे कहाँ से, मधुशाला औ'
जग की जोड़ी ठीक नहीं,
जग जर्जर प्रतिदन, प्रतिक्षण,
पर नित्य नवेली मधुशाला।।२३।
बिना पिये जो मधुशाला को
बुरा कहे, वह मतवाला,
पी लेने पर तो उसके मुँह
पर पड़ जाएगा ताला,
दास- द्रोहियों दोनों में है
जीत सुरा की, प्याले की,
विश्वविजयिनी बनकर जग में
आई मेरी मधुशाला।।२४।
हरा भरा रहता मदिरालय,
जग पर पड़ जाए पाला,
वहाँ मुहर्रम का तम छाए,
यहाँ होलिका की ज्वाला,
स्वर्ग लोक से सीधी उतरी
वसुधा पर, दुख क्या जाने,
पढ़े मर्सिया दुनिया सारी,
ईद मनाती मधुशाला।।२५।
एक बरस में, एक बार ही
जगती होली की ज्वाला,
एक बार ही लगती बाज़ी,
जलती दीपों की माला,
दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन
आ मदिरालय में देखो,
दिन को होली, रात दिवाली,
रोज़ मनाती मधुशाला।।२६।
नहीं जानता कौन, मनुज
आया बनकर पीनेवाला,
कौन अपिरिचत उस साकी से,
जिसने दूध पिला पाला,
जीवन पाकर मानव पीकर
मस्त रहे, इस कारण ही,
जग में आकर सबसे पहले
पाई उसने मधुशाला।।२७।
बनी रहें अंगूर लताएँ
जिनसे मिलती है हाला,
बनी रहे वह मिटटी जिससे
बनता है मधु का प्याला,
बनी रहे वह मदिर पिपासा
तृप्त न जो होना जाने,
बनें रहें ये पीने वाले,
बनी रहे यह मधुशाला।।२८।
सकुशल समझो मुझको, सकुशल
रहती यदि साकीबाला,
मंगल और अमंगल समझे
मस्ती में क्या मतवाला,
मित्रों, मेरी क्षेम न पूछो
आकर, पर मधुशाला की,
कहा करो 'जय राम' न मिलकर,
कहा करो 'जय मधुशाला'।।२९।
सूर्य बने मधु का विक्रेता,
सिंधु बने घट, जल, हाला,
बादल बन-बन आए साकी,
भूमि बने मधु का प्याला,
झड़ी लगाकर बरसे मदिरा
रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम कर,
बेलि, विटप, तृण बन मैं पीऊँ,
वर्षा ऋतु हो मधुशाला।।३०।
क्रमश:
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