धर्म - ग्रंथ सब जला चुकी है
जिसके अंतर की ज्वाला
मंदिर , मस्जिद , गिरजे - सबको
तोड़ चुका जो मतवाला ,
पंडित , मोमिन , पादरियों के
फंदों को जो काट चुका
कर सकती है आज उसी का
स्वागत मेरी मधुशाला ।
लालायित अधरों से जिसने
हाय , नहीं चूमी हाला ,
हर्ष - विकंपित कर से जिसने ,
हा , न छुआ मधु का प्याला
हाथ पकड़ लज्जित साकी का
पास नहीं जिसने खींचा
व्यर्थ सुखा डाली जीवन की
उसने मधुमय मधुशाला ।
बने पुजारी प्रेमी साकी ,
गंगाजल पावन , हाला ,
रहे फेरता अविरत गति से
मधु के प्यालों की माला ,
और लिए जा , और पिये जा -
इसी मंत्र का जाप करे ,
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूँ ,
मंदिर हो यह मधुशाला ।
बाजी न मंदिर में घड़ियाली ,
चढ़ी न प्रतिमा पर माला
बैठा अपने भवन मुअज्जिन
देकर मस्जिद में ताला
लुटे खजाने नरपतियों के ,
गिरीं गढ़ों की दीवारें ;
रहें मुबारक पीने वाले
खुली रहे यह मधुशाला ।
बड़े - बड़े परिवार मिटें यों ,
एक न हो रोने वाला
हो जाएँ सुनसान महल वे ,
जहां थिरकती सुरबाला
राज्य उलट जाएँ , भूपों की
भाग्य - सुलक्ष्मी सो जाये ;
जमे रहेंगे पीने वाले ,
जगा करेगी मधुशाला ।
सब मिट जाएँ , बना रहेगा
सुंदर साकी , यम काला ,
सूखें सब रस , बने रहेंगे
किन्तु , हलाहल , औ ' हाला ;
धूमधाम औ ' चहल - पहल के
स्थान सभी सुनसान बने ,
जगा करेगा अविरत मरघट ,
जगा करेगी मधुशाला ।
क्रमश:
जिसके अंतर की ज्वाला
मंदिर , मस्जिद , गिरजे - सबको
तोड़ चुका जो मतवाला ,
पंडित , मोमिन , पादरियों के
फंदों को जो काट चुका
कर सकती है आज उसी का
स्वागत मेरी मधुशाला ।
लालायित अधरों से जिसने
हाय , नहीं चूमी हाला ,
हर्ष - विकंपित कर से जिसने ,
हा , न छुआ मधु का प्याला
हाथ पकड़ लज्जित साकी का
पास नहीं जिसने खींचा
व्यर्थ सुखा डाली जीवन की
उसने मधुमय मधुशाला ।
बने पुजारी प्रेमी साकी ,
गंगाजल पावन , हाला ,
रहे फेरता अविरत गति से
मधु के प्यालों की माला ,
और लिए जा , और पिये जा -
इसी मंत्र का जाप करे ,
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूँ ,
मंदिर हो यह मधुशाला ।
बाजी न मंदिर में घड़ियाली ,
चढ़ी न प्रतिमा पर माला
बैठा अपने भवन मुअज्जिन
देकर मस्जिद में ताला
लुटे खजाने नरपतियों के ,
गिरीं गढ़ों की दीवारें ;
रहें मुबारक पीने वाले
खुली रहे यह मधुशाला ।
बड़े - बड़े परिवार मिटें यों ,
एक न हो रोने वाला
हो जाएँ सुनसान महल वे ,
जहां थिरकती सुरबाला
राज्य उलट जाएँ , भूपों की
भाग्य - सुलक्ष्मी सो जाये ;
जमे रहेंगे पीने वाले ,
जगा करेगी मधुशाला ।
सब मिट जाएँ , बना रहेगा
सुंदर साकी , यम काला ,
सूखें सब रस , बने रहेंगे
किन्तु , हलाहल , औ ' हाला ;
धूमधाम औ ' चहल - पहल के
स्थान सभी सुनसान बने ,
जगा करेगा अविरत मरघट ,
जगा करेगी मधुशाला ।
क्रमश:
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